जस्टिस हेमा कमेटी रिपोर्ट और सिनेमा में महिलाओं की स्थिति

भारत की सिनेमा इंडस्ट्री ने 1930 के दशक से खुद को एक ऐसी पहचान दी है, जिसने 1570 लाख भारतीयों को मोह लिया हैं। फिल्मों को समाज का आईना माना जाता है, क्योंकि वे हमारे समाज को आकार देती हैं। इंसान अनजाने में फिल्मों के विचार, संवाद और किरदारों को अपनी रोजमर्रा की ज़िंदगी में…

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भारत की सिनेमा इंडस्ट्री ने 1930 के दशक से खुद को एक ऐसी पहचान दी है, जिसने 1570 लाख भारतीयों को मोह लिया हैं। फिल्मों को समाज का आईना माना जाता है, क्योंकि वे हमारे समाज को आकार देती हैं। इंसान अनजाने में फिल्मों के विचार, संवाद और किरदारों को अपनी रोजमर्रा की ज़िंदगी में अपना लेता है, लेकिन जब पर्दे पर चमकने वाले सितारे हमें मोहित कर देते हैं, तो हम शायद यह भूल जाते हैं कि उनके पीछे एक और सच्चाई छुपी हुई है। आज भी जब हम इस युग के अभिनेताओं को देखते हैं, पर्दे के पीछे छुपी उनकी सच्चाई पर सवाल उठना जायज़ है। आज के युग में अभिनेत्रियों की स्तिथि और सुरक्षा पर भी सवाल उठाए जा सकते हैं। इसी की जाँच के लिए केरल सरकार ने पूर्व न्यायाधीश, जस्टिस हेमा की अध्यक्षता में महिला अधिकारी सुहासिनी मणिरत्न और आईएएस अधिकारी के.बी. विमला की एक समिति गठित की।

प्रस्तावना

सिनेमा सिर्फ पर्दे पर चलने वाली कहानियाँ नहीं, बल्कि उन कहानियों के पीछे छुपी हकीकत भी होती है। २०१७ में फिल्म उद्योग में शामिल महिलाओं के साथ होते शोषण व् दुर्व्यवहार की कई घटनाएं केरला सरकार के सामने आयीं। इस मामले की गंभीरता को समझते हुए, केरला सरकार ने जस्टिस हेमा कमिटी का निर्माण किया और मलयालम फिल्म इंडस्ट्री (जिसे मॉलीवुड भी कहा जाता हैं) की जांच का ज़िम्मा सोंपा गया | इस कमिटी का गठन केरल उच्च न्यायालय की पूर्व न्यायाधीश जस्टिस हेमा ने किया। इस कार्य के लिए उन्होंने कई फिल्म निर्माता व् फिल्म संगठनों से भी परिचर्चा इस कमिटी की रिपोर्ट ने फिल्म इंडस्ट्री की  महिलाओं के साथ होते अत्याचार और शोषण का खुलासा किया।  इनका उद्देश्य था महिलाओ के साथ सिनेमा इंडस्ट्री में हो रहे शोषण व भेदभाव की गिनती व गड़ना करना तथा दर्ज करी शिकायतों की जांच पड़ताल करना व अन्य दिक्कतो को समझना और संबंधित प्राधिकारियों की नज़र में लाना ताकी महिलाओ के कार्यस्थल में एक सुरक्षित वातावरण की प्राप्ति हो और न्याय की प्रगति हो।

मुख्य निष्कर्ष

महिला कार्यकर्ता और कलाकारों को स्त्री-पुरुष असमानता, दुर्व्यवहार, दैहिक शोषण, मानसिक तनाव, यौन

उत्पीड़न और वेतन में असमानता का सामना करना पड़ रहा था | इस रिपोर्ट के द्वारा अनेक महिलाओ की शिकायतें और पीड़ा पूरे देश के सामने आयी, जिसके कारण फिल्म इंडस्ट्री में काफी बदलाव देखने को मिले। इस रिपोर्ट के 19 अगस्त, 2024 को जारी होते ही एक हड़कंप मच गया, मानो लोगों को अपने ही समाज की सच्चाई का अंदाजा न हो। अखबार, टीवी और प्रभावशाली लोग ने भी बहुत चर्चा की|

1. महिला एक्ट्रेस को फिल्म सेट्स व ऑडिशन के दौरान भेदभाव, शोषण व अनुचित व्यायहार का सामना करना पड़ता था | शौचालय और चेंजिंग रूम जैसी बुनियादी सुविधाएं भी नदारद रहीं| महिलाओं को शराब और नशीली दवाओं के प्रभाव में रहने वाले अन्य लोगों से घोर अव्यवस्थित आचरण का सामना करना पड़ता है, अश्लील टिप्पणियां, साइबर उत्पीड़न, भुगतान असमानता आदि। 

2. कानूनी दयारो और कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 के गैर-कार्यान्वयन के कारण महिला एक्ट्रेस अपने अधिकारो का उल्लंघन रोकने में असफल रही।

3. महिला कलाकारों के लिए काम की कमी के कारण उन्हे आर्थिक तौर पर शोषित किया जाता था | कम वेतन, कम इज़्ज़त व कम अवसरो का इस्तेमाल करके महिला कलाकारो पर दबाव बनाया जाता है। 

4. जस्टिस हेमा कमिटी रिपोर्ट ने यह भी पाया कि जिन महिला कार्यकर्ताओ ने शिकायतें दर्ज भी करी थी, उनकी शिकायतों को अनदेखा वा अनसुना छोड़ दिया गया, साथ ही साथ उन्हे ब्लैकलिस्ट कर दिया गया, जिसकी वजह से इन कालाकारो का विश्वास कानून व न्याय से उठ गया।

5. शादी हो जाना, प्रेग्नेंट होना और उम्र बढ़ने के कारण, महिला कलाकारो के अवसार उनसे छीन लि जाते हैं।

6. आखिर में रिपोर्ट ने ज़रूरत दर्शायी महिला संगीत कानून के लिए जो जल्द से जल्द लागू किया जा सके। यह समस्या केवल लिंग आधारित नहीं है, बल्कि जाति, आर्थिक स्थिति और सामाजिक पृष्ठभूमि से भी जुड़ी हुई है। अगर कोई महिला दलित या आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग से आती है, तो उसके लिए इस इंडस्ट्री में खुद को बनाए रखना और भी कठिन हो जाता है। चर्चा ज़रूरी हैं | २०१७ जीना डेविस रिपोर्ट के अनुसार, केवल 31.5% अभिनेत्रियाँ किसी भी सीन में नज़र आती हैं, जबकि पुरुषों को 68.5% अधिक स्क्रीन समय मिलता है। अगर हम अभिनय से आगे बढ़कर स्क्रिप्ट राइटिंग, फिल्म मेकिंग और प्रोडक्शन की बात करें, तो स्थिति और भी चिंताजनक हो जाती है, बॉलीवुड में हर 10 में से सिर्फ 1 डायरेक्टर महिला होती है, बस एक! 

7. फिल्म इंडस्ट्री में महिला-पुरुष अनुपात 1:6 है। सिर्फ 8% नेतृत्वकारी भूमिकाएँ महिलाओं के पास हैं, जबकि 92% फैसले पुरुषों द्वारा लिए जाते हैं।  इसका सीधा असर फिल्मों में महिलाओं की प्रस्तुति पर पड़ता है, जब पर्दे के पीछे महिलाएँ नहीं होंगी, तो पर्दे पर उनकी कहानियाँ भी नहीं होंगी। इस रिपोर्ट से यह स्पष्ट होता है कि जब तक निर्देशन, लेखन और प्रोडक्शन जैसी महत्वपूर्ण भूमिकाओं में महिलाओं की भागीदारी नहीं बढ़ेगी, तब तक सिनेमा में वास्तविक बदलाव की उम्मीद करना मुश्किल है।

एक इंसान को अपने कार्यस्थल पर सुरक्षित रहने का और महसूस करने का पूरा हक हैं, और इस के लिए कानून और अधिकार देने आवश्यक है| फरक ज़रूरी हैं, फरक लाना हमारी जिम्मेदारी हैं।सिनेमा सिर्फ मनोरंजन नहीं, बल्कि समाज का आईना होता है। यदि फिल्म उद्योग में महिलाओं को समान अधिकार नहीं मिलेंगे, तो पर्दे पर दिखने वाली कहानियाँ आगे के समय में किस तरह गड्ढी जाएंगी?

आगे का रास्ता

महिलयो की बढ़ती परेशानियो को मद्दे नजर रखते हुए, हेमा कमिटी रिपोर्ट तैयार करी गयी, जिसमें केरला हाइ कोर्ट ने अपना गहरा अचंभा प्रस्तुत किया जहा यह पाया गया कि महिलयो को उनके लिंग की वजह से कितनी परेशानियों से गुजरना पड़ा।न्यायालय ने सरकार को नए कानून की ज़रूरत जतायी ताकी यह समस्याएं जैसे यौन उत्पीड़न, अनुचित व्यवहार, असमान वेतन व अवसरों की जान बूझ कर कमी करना जैसी दिक्कतो के लिये समाधान निकल सके।

वीमेन इन सिनेमा कलेक्टिव (WCC) के सुझावों के अनुसार, इस समस्या से निपटने के लिए कुछ ठोस कदम उठाए जा सकते हैं। उदाहरण के लिए: एक समान कोड ऑफ कंडक्ट लागू किया जाए। कार्यस्थल से जुड़े अधिकारों की स्पष्ट परिभाषा दी जाए। कार्यस्थल, कलाकारों और कर्मचारियों के काम के घंटे और उनके अधिकारों को स्पष्ट किया जाए। कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 और ज़ीरो टॉलरेंस पॉलिसी का उपयोग व बधोतिरी के लिये माध्यम बनाये जाने चाहिये, किसी भी प्रकार के शोषण औरविभेदन के खिलाफ। इस सब की देख भाल के लिए उनका सुझाव हैं सूत्रीकरणओएफ एन अंतःकालीन नियामक आयोग जिसका प्रसीक्षण एक पूर्व हाई कोर्ट के न्यायाधीश व विविध उद्योग प्रतिनिधित्व के द्वारा किया जाएगा।


Author

Megha Chhari

Batch 2024-2029

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